पाश जैसे क्रांतिकारी जन-कवि की आतंकवादियों ने उनके अपने ही गांव में गोली मारकर हत्या कर दी थी | पंजाब के जालंधर जिले में सन 1950 में जन्में ‘पाश’ का जीवन कई मायनों में अनोखा रहा | पहला तो यही कि “साहित्य के जरिये भी आतताईयों के चेहरे पर वार किया जा सकता है और वह वार इतना तिलमिला देने वाला हो सकता है कि वे आपकी जान भी ले लें” | हालाकि अपनी लेखनी के लिए जीवन को कुर्बान करने वाले साहित्यकारों में ‘पाश’ अकेले नहीं हैं , वरन उनमे से एक हैं जो कुछ लोगों के इन शातिराना सवालों का , कि ‘लिखने मात्र से क्या होता है?’ , माकूल उत्तर छोड़ जाते हैं, कि व्यवस्थाओं की गोद में बैठकर तमगे लूटने वालों से इतर भी देखने पढ़ने की कोशिश होनी चाहिए , जहाँ कवि कहता है कि ‘ तुम मुझे एक चाकू दो / मैं अपनी रगें काटकर दिखा सकता हूँ / कि कविता कहाँ है ” |(सर्वेश्वर)| दूसरा यह कि “जीवन को मापने का तरीका हमेशा से गुड़वत्ता ही हुआ करता है , उसकी मात्रात्मकता नहीं” | ‘पाश’ के 37 वर्षीय जीवन की लम्बाई और सौ–सवा सौ कविताओं की संख्या उन तमाम लोगों के जीवन और पुस्तकों पर इक्कीस बैठती है , जिन्हें आठ-नौ दशकों का भरा-पूरा जीवन नसीब हुआ .
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं
होती,
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती,
गद्दारी, लोभ का मिलना सबसे
खतरनाक नहीं होता,
सोते हुये से पकडा जाना बुरा तो है,
सहमी सी चुप्पी में जकड जाना
बुरा तो है,
पर सबसे खतरनाक नहीं होता,
सबसे खतरनाक होता है मुर्दा
शान्ति से भर जाना,
न होना तडप का सब कुछ सहन कर जाना,
घर से निकलना काम पर और काम से
लौट कर घर आना,
सबसे खतरनाक होता है, हमारे
सपनों का मर जाना ।
सबसे खतरनाक होती है, कलाई पर
चलती घडी, जो वर्षों से स्थिर है।
सबसे खतरनाक होती है वो आंखें
जो सब कुछ देख कर भी पथराई सी है,
वो आंखें जो संसार को प्यार से
निहारना भूल गयी है,
वो आंखें जो भौतिक संसार के
कोहरे के धुंध में खो गयी हो,
जो भूल गयी हो दिखने वाली
वस्तुओं के सामान्य
अर्थ और खो गयी हो व्यर्थ के खेल
के वापसी में ।
सबसे खतरनाक होता है वो चांद, जो
प्रत्येक हत्या के बाद उगता है
सूने हुए आंगन में,
जो चुभता भी नहीं आंखों में,
गर्म मिर्च के सामान
सबसे खतरनाक होता है वो गीत जो
मातमी विलाप के साथ कानों में
पडता है,
और दुहराता है बुरे आदमी की
दस्तक, डरे हुए लोगों के दरवाजे पर.
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हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग के सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुयी
हथेली को पसीने नहीं आते
शेल्फों में पड़े
इतिहास के ग्रंथो को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़मी है
झेलनेवाले दिलों का होना
नींद की नज़र होनी लाज़मी है
सपने इसलिए हर किसी को नहीं आते —
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मैं किसी सफ़ेदपोश कुर्सी का बेटा नहीं
बल्कि इस अभागे देश की भावी को गढ़ते
धूल में लथपथ हज़ारों चेहरों में से एक हूं
मेरे माथे पर बहती पसीने की धारों से
मेरे देश की कोई भी नदी बेहद छोटी है।
किसी भी धर्म का कोई ग्रंथ
मेरे जख्मी होठों की चुप से अधिक पवित्र नहीं है।
तू जिस झंडे को एड़ियां जोड़कर देता है सलामी
हम लुटे हुओं के दर्द का इतिहास
उसके तीन रंगों से ज्यादा गाढ़ा है
और हमारी रूह का हर एक जख़्म
उसके बीच वाले चक्र से बहुत बड़ा है
मेरे दोस्त, मैं मसला पड़ा भी
तेरे कीलों वाले बूटों तले
माउंट एवरेस्ट से बहुत ऊंचा हूं
मेरे बारे में ग़लत बताया तेरे कायर अफसरों ने
कि मैं इस राज्य का सबसे खतरनाक महादुश्मन हूं
अभी तो मैंने दुश्मनी की शुरुआत भी नहीं की
अभी तो हार जाता हूं मैं
घर की मुश्किलों के आगे
अभी मैं कर्म के गड्ढे
कलम से आट लेता हूं
अभी मैं कर्मियों और किसानों के बीच
छटपटाती कड़ी हूं
अभी तो मेरा दाहिना हाथ तू भी
मुझसे बेगाना फिरता है।
अभी मैंने उस्तरे नाइयों के
खंज़रों में बदलने हैं
अभी राजों की करंडियों पर
मैंने लिखनी है वार चंडी की।
————————by PASH
यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना जमीर होना जिंदगी के लिए शर्त बन जाये
आंख की पुतली में हां के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.
हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूंज की तरह गलियों में बहता है
गेहूं की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है
हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझते थे कुरबानी-सी वफा
लेकिन गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है
गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे खतरा है
गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख्वाहों के मुंह पर थूकती रहे
कीमतों की बेशर्म हंसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से खतरा है
गर देश की सुरक्षा को कुचल कर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मर कर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक्ल, हुक्म के कुएं पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है.—————by Awtaar singh sandhu – PAASH
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